शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

देश अव्यवस्था के भयानक चक्रवात से गुजर रहा होगा

आजादी के बाद विकास की नई उचाईयो को छूने व विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का दर्जा पाने के बाद भी हम समान न्याय व्यवस्था के आधार पर एक भय मुक्त समाज का निर्माण करने में सफल नही हुये है। पुत्र द्वारा प्रताडित दम्पति को थाना प्रभारी द्वारा यह कहा जाता है कि " जो बोया था वही काट रहे हो,शिकायत करोगे ,वह बंद हो जायेगा। बाहर निकलेगा, तो काट डालेगा"। जिनसे सहायता की उम्मीद,उनसे यह उत्तर । प्रश्न उठता है कहा जायें ऐसे लोग। यह कोई पहला वाकिया नही है। रोज ऐसे प्रसंग देखने, सुनने,पढ़ने को मिल जाते है। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ के नक्सली प्रभावित क्षेत्र में जाना हुआ। रायपुर पहुचते-पहुचते शाम हो गई .मेरे ड्राइवर ने रात्री में आगे न चलने की सलाह दी। जाना जरूरी था अत: यात्रा स्थगित नही की ,और सुबह होते-होते सुकमा पहुच गये।मन में जो भय था वैसा कोई वातावरण वहा देखने को नही मिला,जैसा टीवी व समाचार पत्रों में देखता या पढ़ता आया था। वहा के लोगो ने बताया कि नक्सलियों की लड़ाई सिर्फ सरकार से है,आम लोगो से नही। क्या सरकार में आम लोगो की सहभागिता नही या सरकार आम लोगो की नही ? कुछ वाकिये भी सुनने को मिले। एक आदमी को अपनी जमीन का पट्टा नही मिल पा रहा था उसने नक्सलियों से शिकायत की ,तीन दिन में पटवारी पट्टा घर में पंहुचा गया। जो काम हमारे प्रशासन को करना चाहिए वह नक्सली कर रहे है। समझ में नही आया कि नक्सलियों की सराहना करू या देश की प्रशासनिक व्यवस्था को कोसू। नक्सली तरीके से भी व्यवस्थित सभ्य समाज की स्थापना नही की जा सकती। लेकिन यह भी सच है कि दोष पूर्ण राजनीति से ही ऎसे हालात पैदा हुये हॆ। वैसे हो सकता है सभी मेरी बात से सहमत न हो ,पर मुझे लगता है कि राजनीत से देश के बुद्धिजीवियों का पलायन भी इसका बहुत बड़ा कारण रहा है। आजादी के बाद शिक्षा के अस्तर मे काफी सुधार आया,पर बुद्धिजीवी समाज का निर्माण नही हुआ। पहले का आदमी अशिक्षित जरूर था,पर था बुद्धिजीवी। अच्छे बुरे की पहचान थी उसको । आज का आदमी शिक्षित जरूर है, पर है शरीरजीवी, स्वहित के लिए सही-ग़लत के भेद को नकारता हुआ। समय रहते लोग सचेत नही हुये और सामाजिक,राजनैतिक,आर्थिक आधार पर इसके निदान के प्रयास नही किये गये,तो वह दिन भी दूर नही, जब देश अव्यवस्था के भयानक चक्रवात से गुजर रहा होगा ।

विक्रम

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