बुधवार, 30 जनवरी 2008

वह पागल थी ...............

रात्रि लगभग दो बजे किसी ने दरवाजे पे दस्तक दी। देखा तो दरवाजे पे एक बूढी औरत फटे हाल कपडो में खडी थी . उसने इशारों से मुझसे खाने के लिए कुछ देने को कहा। उसके हाव भाव से लग रह था, कि उसकी मानसिक स्थित ठीक नही है। मैने रसोईघर में जाकर देखा, पाँच रोटिया व थोड़ी सी सब्जी बची थी। वह लाकर मैने उसे दे दिया, और खाने के लिए कहा। उसने उगली से रोड की तरफ इशारा किया, ओर रोटी ले कर चल दी। उत्सुकता बस मै भी उसके पीछे चल पड़ा। रोड में बिजली के खंभे के पास एक कुत्ता बैठा हुआ था। कुत्ते की गर्दन में घाव था, ओर उससे बदबू भी आ रही थी। वह जाकर कुत्ते के पास बैठ गयी, ओर रोटी के टुकडे सब्जी के साथ कुत्ते को खिलाने लगी। पूरी रोटियां कुत्ते को खिलाने के बाद ,उसने अपनी धोती से एक टुकडा फाड़ कर निकाला ओर कुत्ते की गर्दन में बाध दिया। और खुद जाकर एक आम के पेड़ के नीचे सो गयी। मै खुद ही समझ नही पा रहा था कि इसे क्या समझू, पागलपन या ममता का प्रतीक.............

vikram

मंगलवार, 8 जनवरी 2008

सजा जो ............

मैं यहाँ बचपन की एक घटना के उल्लेख कर रहा हूँ,जो आज भी पथप्रदर्शक की भूमिका निभाने के साथ साथ जिन्दगी के सही माइनें भी समझा गयी। छब्बीस जनवरी का दिन था, मै उस समय कक्षा दसवी का छात्र था.
.सुबह के समय तैयार होकर प्रभात फेरी के लिए स्कूल जा रहा था। जैसे ही मै घर से बाहर निकला,मेरे घर के जानवरों का गोबर उठानें वाली, जिसे हम लोग रनिया की दाई नाम से बुलाते थे, गोबर का टोकरा लिए उसे फेकने के लिए जा रही थी। मै उसके बगल से गुजरा ,मेरा शरीर उसके हाथ से छू गया जिसके कारण थोडा सा गोबर मेरे कपडे में लग गया। मैने इस बात के लिए उसे बहुत डाटा .वह अपनी ही गलती मान मुझसे माफी मागने लगी। मै कपडे बदल कर स्कूल चला गया.दूसरे दिन मेरे चाचा स्वर्गीय श्री केदारनाथसिंह जी ने सुबह चार बजे ही मुझे उठा दिया, मै गर्म कपडे पहनने के लिए बढ़ा, परन्तु मुझे नही पहनने दिया। जहाँ सारे जानवर बाधे जाते थे वे मुझे लेकर वहां गए,और मुझे गोबर उठाने के लिए कहा .मेरी समझ में नही आरहा था कि वे ऐसा क्यूँ कर रहें हैं। मैने आनाकानी की तो पिटाई हो गयी.मै मजबूरन रोते हुए गोबर उठाने लगा। कुछ देर पश्चात गोबर उठाने वाली वह बूढी औरत भी आ गयी .चाचा जी ने उसे गोबर उठाने से मना कर दिया, और बोले आज ये गोबर उठायेगे। जब मै पूरा गोबर उठा कर घूर में फेक दिया, तो उन्होने मुझसे पूछा कि बोलो तुमसे मैनें गोबर क्यों उठावाया.मै कारण नही समझ पाया था इसलिए अनिभिज्ञता जाहिर की। इस पर वे बोले कि कल तुमने छोटी सी बात पर इस बुजुर्ग औरत का अपमान किया। ये हमारा काम करती है, बदले में हम इसे पैसा देते हैं. इसका अपमान करने का हक न तुम्हें है न मुझे.चलो माफी मागो तभी तुम्हे घर में खाना भी मिलेगा ,अन्यथा खुद मजदूरी करके अपना पेट भरना। मैने हाथ जोड कर माफी मागी।
इस घटना का मेरे जीवन में गहरा असर पड़ा .चाचा जी द्वारा दिया गया वह दंड मेरे लिए आर्शीवाद बन गया.

vikram

गुरुवार, 3 जनवरी 2008

कौन बड़ा .........

जीवन मे कभी कभी ऎसे प्रंसग भी आते हैं, जो हमारे अन्तर मन को छूने के साथ साथ अविस्मर्णीय व कुछ सोचने के लिये मजबूर कर देते हैं. ऎसी ही एक घटना का उल्लेख मै यहां पर कर रहा हूँ.

होलिका उत्सव का समय था,भीखू नाम का व्यक्ति अपनी उन्नीस वर्षीय बेटी मीनू के साथ मेरे पास आया.वह मेरे यहाँ से 70कि. मी. दूर स्थित ग्राम का निवासी था।उसने मुझे अपने ग्राम के ठाकुर साहब का पत्र दिया ,जिसमे उसे सहयोग देने की बात कही गयी थी। पूछने पर पता चला कि मेरे ग्राम का ही युवक उसे लिवा लाया था, अब वह उसे रखने को तैयार नही है,मैने उसे बुलाकर पूछा तो उसने बताया कि इसका आचरण सही नही है , मीनू ने बताया कि यह शराब पीकर मारता है।काफी समझाने के बाद दोनो साथ रहने को तैयार हो गये।
कुछ माह बाद उनमे फिर झगडे होने लगे। गाव वालो ने भी मीनू को दोषी बताया। एक दिन मै कार्य वस घर से बाहर जा रहा था,वह फिर शिकायत लेकर आ गयी, उस दिन मैने उसे बहुत डाटा,और दुबारा न आने की हिदायत भी दी। शाम को जब मै घर वापस आया तो वह घर के आँगन में बैठी हुय़ी थी,
मै उसे कुछ बोलता, मेरी धर्मपत्नी ने कहा कि इसे मैने रोका है. कारण पूछने पर जो बताया वह काफी शर्मनाक और पीडा पहुचाने वाली बात थी। जब मीनू क़क्षा पाचवी की छात्रा थी उसी के स्कूल के शिक्षक ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाया । शिक्षक उन्ही ठाकुर साहब का भाई था, जिनका पत्र लेकर वह मेरे पास आई थीं। अब बदनामी के डर से वे लोग उसे गाव में नही रहने दे रहे थे. पहले मुझे उसकी बात पर यकीन नही हुआ, साथ ही उन ठाकुर साहब से मेरे सामाजिक ,राजनैतिक संबंध भी थे। लेकिन मेरी पत्नी कुछ
सुनने को तैयार ही नही थीं ,उन्होने यहाँ तक कह डाला कि अगर इसे न्याय नही दिलाया तो अब किसी की भी पंचायत आप नही करेगे। मैनें हकीकत जानने के लिए मीनू के भाई व बाप को बुलवाया। इस बात की जानकारी शिक्षक व उनके भाई को भी हो गयी और वे भी आ गए। उनका कहना था कि ये लड़की झूठ बोल रही है। उनकी बात का समर्थन मीनू के घर वाले भी करने लगे। मैनें सच्चाई जानने के लिए दोनो को आमने सामने किया, मीनू से नजर मिलते ही शिक्षक का चेहरा शर्म के मारे झुक गया और माफी मागते हुए मीनू के पैरों में गिर पडा, मीनू रोती हुयी पीछे हट गई और मुझसे बोली" दाऊ साहब जाने दीजिये ,इतने बडे आदमी मेरे पैरों में गिरे अच्छा नही लगता"। कौन बड़ा ,ये प्रश्न और उत्तर लगता हैं आज भी मेरे सामने खडे हुये हैं।
विक्रम

[वास्तविक नाम बदल दिए गए हैं]