मंगलवार, 8 जनवरी 2008

सजा जो ............

मैं यहाँ बचपन की एक घटना के उल्लेख कर रहा हूँ,जो आज भी पथप्रदर्शक की भूमिका निभाने के साथ साथ जिन्दगी के सही माइनें भी समझा गयी। छब्बीस जनवरी का दिन था, मै उस समय कक्षा दसवी का छात्र था.
.सुबह के समय तैयार होकर प्रभात फेरी के लिए स्कूल जा रहा था। जैसे ही मै घर से बाहर निकला,मेरे घर के जानवरों का गोबर उठानें वाली, जिसे हम लोग रनिया की दाई नाम से बुलाते थे, गोबर का टोकरा लिए उसे फेकने के लिए जा रही थी। मै उसके बगल से गुजरा ,मेरा शरीर उसके हाथ से छू गया जिसके कारण थोडा सा गोबर मेरे कपडे में लग गया। मैने इस बात के लिए उसे बहुत डाटा .वह अपनी ही गलती मान मुझसे माफी मागने लगी। मै कपडे बदल कर स्कूल चला गया.दूसरे दिन मेरे चाचा स्वर्गीय श्री केदारनाथसिंह जी ने सुबह चार बजे ही मुझे उठा दिया, मै गर्म कपडे पहनने के लिए बढ़ा, परन्तु मुझे नही पहनने दिया। जहाँ सारे जानवर बाधे जाते थे वे मुझे लेकर वहां गए,और मुझे गोबर उठाने के लिए कहा .मेरी समझ में नही आरहा था कि वे ऐसा क्यूँ कर रहें हैं। मैने आनाकानी की तो पिटाई हो गयी.मै मजबूरन रोते हुए गोबर उठाने लगा। कुछ देर पश्चात गोबर उठाने वाली वह बूढी औरत भी आ गयी .चाचा जी ने उसे गोबर उठाने से मना कर दिया, और बोले आज ये गोबर उठायेगे। जब मै पूरा गोबर उठा कर घूर में फेक दिया, तो उन्होने मुझसे पूछा कि बोलो तुमसे मैनें गोबर क्यों उठावाया.मै कारण नही समझ पाया था इसलिए अनिभिज्ञता जाहिर की। इस पर वे बोले कि कल तुमने छोटी सी बात पर इस बुजुर्ग औरत का अपमान किया। ये हमारा काम करती है, बदले में हम इसे पैसा देते हैं. इसका अपमान करने का हक न तुम्हें है न मुझे.चलो माफी मागो तभी तुम्हे घर में खाना भी मिलेगा ,अन्यथा खुद मजदूरी करके अपना पेट भरना। मैने हाथ जोड कर माफी मागी।
इस घटना का मेरे जीवन में गहरा असर पड़ा .चाचा जी द्वारा दिया गया वह दंड मेरे लिए आर्शीवाद बन गया.

vikram

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